maha mrityunjaya mantra : महामृत्युंजय मंत्र की महिमा

Maha Mrityunjaya Mantra In Hindi

maha mrityunjaya mantra 

महामृत्युंजय मंत्र (maha mrityunjaya mantra) को संजीवनी मंत्र, त्रयंबकम् मंत्र भी कहा जाता है। महामृत्युंजय मंत्र (maha mrityunjaya mantra), गायत्री मंत्र की तरह ही सबसे अधिक जाना जाने वाला एवं जपने वाला महामंत्र है। इस मंत्र से अकाल मृत्यु एवं रोग तो नष्ट होते ही हैं साथ ही अनेक कष्टों का निवारण भी अपने आप ही हो जाता है।
महामृत्युंजय मंत्र, भगवान शिव से संबंधित है।

महामृत्युंजय मंत्र (maha mrityunjaya mantra):

“ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥”

 

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ हिंदी में (mahamrityunjay mantra meaning in Hindi):

 

यजामहे- हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं। हमारे श्रद्देय।
सुगंधिम- मीठी महक वाला, सुगंधित।
पुष्टि- एक सुपोषित स्थिति, फलने वाला व्यक्ति। जीवन की परिपूर्णता
वर्धनम- वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है।
उर्वारुक– ककड़ी।
इवत्र- जैसे, इस तरह।
बंधनात्र- वास्तव में समाप्ति से अधिक लंबी है।
मृत्यु- मृत्यु से
मुक्षिया- हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें।
अमृतात- अमरता, मोक्ष

महामृत्युंजय मंत्र का संपूर्ण अर्थ यहां सुनें  (maha mrityunjaya mantra )

 

महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति  (maha mrityunjaya mantra):

(maha mrityunjaya mantra) कथा- 1 : पौराणिक कथाओं के अनुसार मृकण्ड ऋषि को शिव की बहुत पूजा अर्चना के बाद पुत्र प्राप्ति हुई थी। जिसका नाम मार्कंडेय रखा गया।

उनका यह पुत्र बहुत ही गुणी एवं तेजस्वी था लेकिन अल्पायु था। ज्योतिषियों ने उसकी आयु केवल 12 वर्ष तक बताई हुई थी। जिस कारण मृकण्ड ऋषि एवं उनकी पत्नी बहुत ही चिंतामग्न कहते थे लेकिन फिर भी मृकण्ड ऋषि को अपने भोलेनाथ पर पूर्ण विश्वास था।

धीरे-धीरे मार्कंडेय बड़े होने लगे। उनके पिता मृकण्ड ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा दे दी और दुखी होकर, उन्हें उनके अल्पायु होने के बारे में भी बता दिया। तभी बालक मार्कंडेय ने यह है मन में निर्णय कर लिया कि अपने माता-पिता की खुशी के लिए वे भगवान शिव से अपने दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त करेंगे।

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इसके बाद मार्कंडेय ने एक शिव मंत्र की रचना की जिसे हम आज महामृत्युंजय मंत्र के नाम से जानते हैं :

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बंधनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ।।

मृत्यु का समय निकट आने से कुछ समय पूर्व ही मार्कंडेय इस मंत्र का जप करने लगे।

इधर बालक मार्कंडेय की आयु पूर्ण होने पर जब यमदूत उनके प्राण लेने पहुंचे तो मार्कंडेय, शिवलिंग के निकट बैठकर, महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर रहे थे अतः यमदूत उनको छू भी ना सके और यमराज के पास आकर उन्होंने कहा कि हम मार्कंडेय के पास पहुंच नहीं पा रहे हैं! इस पर यमराज क्रोधित हो गए और बोले ठीक है उसको मैं स्वयं लेकर आऊंगा।

जब यमराज को लेने पहुंचे तो उनका भयावह रूप एवं रक्त नेत्र देखकर, बालक मार्कंडेय जोर-जोर से महामृत्युंजय का पाठ करते हुए शिवलिंग से लिपट गए।

यमराज ने उन्हें शिवलिंग से अलग करके ले जाने की कोशिश की। तभी शिवलिंग से महाकाल शिव शंकर प्रकट हो गए और उन्होंने यमराज से क्रोधित होकर कहा कि मेरी भक्ति में लीन भक्तों को तुम परेशान करने का साहस कैसे कर सकते हो!

भगवान शिव के आगे यमराज नतमस्तक हो गए और भय से कांपने लगे। उन्होंने कहा प्रभु मैं तो अपने कर्तव्य का पालन ही कर रहा था। अतः मुझ पर दया करें।

यमराज की दया याचना से भगवान शिव शांत हो गए और उनसे कहा कि अपने इस भक्त की भक्ति से मैं प्रसन्न हो गया हूं और इसे दीर्घायु होने का वरदान देता हूं। इसलिए अब तुम इसके प्राण नहीं ले जा सकते।

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इसके बाद यमराज भगवान शिव को प्रणाम करके यह कहते हुए चले गए कि आपके भक्त मारकंडेय द्वारा रचित इस महामृत्युंजय मंत्र का पाठ करने वाले किसी भी भक्त को मैं त्रास नहीं दूंगा।

इस तरह महामृत्युंजय मंत्र से आई हुई अकाल मृत्यु को भी हराया जा सकता है।

(maha mrityunjaya mantra) कथा- 2

महामृत्युंजय मंत्र की दूसरी कथा का संबंध चंद्रदेव से भी जुड़ता है। कहा जाता है कि दक्ष के श्राप के कारण, क्षय रोग से ग्रसित चंद्रदेव ने, उस शाप से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की इसी मंत्र से साधना की थी जिससे उन्हें क्षय रोग से मुक्ति मिली थी।

महामृत्युंजय मंत्र की महिमा (maha mrityunjaya mantra):

किसी भी भय से मुक्ति के लिए , रोग अथवा कष्ट के निवारण के लिए तथा अकाल मृत्यु से बचने के लिए महामृत्युंजय मंत्र maha mrityunjay jaap का जाप करना चाहिए। यहां यह ध्यान रखना चाहिए कि मंत्र संख्या समान अथवा बढ़ते क्रम में होनी चाहिए।

महामृत्युंजय मंत्र केवल मृत्यु से ही आप को नहीं बचाता वरन् जीवन की किसी भी परेशानी में इस मंत्र के जाप से आप मुक्ति पा सकते हैं। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि मन में श्रद्धा और उच्चारण शुद्ध हो। शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय, इस मंत्र का जाप बहुत लाभकारी रहता है।

अगर 108 बार संभव ना हो सके तो आप 11 बार भी कर सकते हैं :

 

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