Nirjala Ekadashi : जानिए क्या है उसकी पूजा-व्रत कथा एवं विधि

nirjala ekadashi

Nirjala Ekadashi 

1 साल में 24 एकादशी आती हैं (Nirjala Ekadashi)। एक पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद। एकादशी तिथि का मतलब है 11वीं तिथि। सभी एकादशियों का अपना-अपना महत्व है लेकिन उसमें से निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi जिसे भीमसेन एकादशी (bhimsen ekadashi) भी कहा जाता है, प्रमुख रूप से महत्व रखती है।

एकादशी की तिथि जगत के पालनहार श्री विष्णु भगवान को समर्पित है। कुछ भक्तगण साल की 24 एकादशियों को व्रत रखते हैं लेकिन अगर यह संभव नहीं हो पाता तो ऐसा माना जाता है कि केवल निर्जला एकादशी का व्रत करने से ही 24 एकादशियों का पुण्य प्राप्त हो जाता है।

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निर्जला एकादशी Nirjala Ekadashi को अन्य एकादशियों की अपेक्षा बहुत ही कठिन व्रत माना जाता है क्योंकि यह जयेष्ठ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है। ज्येष्ठ मास जो की गर्मी के लिए प्रसिद्ध है इस समय बहुत ही तेज गर्मी पड़ती है और इस एकादशी के दिन बिना जल व अन्न ग्रहण किए व्रत किया जाता है जो कि बहुत ही कठिन और कष्ट साध्य होता है।‌

Nirjala Ekadashi
Nirjala Ekadashi

 

निर्जला एकादशी या भीमसेन एकादशी कथा ( Nirjala Ekadashi Vrat Katha) :

निर्जला एकादशी से सम्बन्धित पौराणिक कथा (Nirjala Ekadashi Vrat Katha) के कारण इसे पाण्डव एकादशी और भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पाण्डवों में दूसरा भाई भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन था और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं था। इसी कारण वह एकादशी व्रत को नही कर पाता था।

भीम के अलावा बाकि पाण्डव भाई और द्रौपदी साल की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया करते थे। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान था।भीमसेन को लगता था कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गया।

तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को साल में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने कि सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी साल की चौबीस एकादशियों के तुल्य है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी (Nirjala Ekadashi) भीमसेनी एकादशी (bhimsen ekadashi)और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।

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निर्जला एकादशी व्रत विधान (Nirjala Ekadashi):

प्रातः उठकर स्नान आदि से स्वच्छ होकर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की आराधना करें! इस दिन निर्जल व्रत करते हुए शेषशायी रूप में भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है।

उन्हें पीले पुष्प अर्पित करें दीपक जलाकर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र का 108 बार जप करें।आपकी सुविधा के लिए हम यहां पर शुद्ध उच्चारण में इस मंत्र का 108 मंत्रों का पूरा एक वीडियो ले कर आए हैं. आप चाहें तो इसे सुन सकते हैं..

-फल इत्यादि या किसी भी सात्विक भोजन का भोग लगाएं और भोग में तुलसी के पत्तों को अवश्य शामिल करें ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु तुलसी के बिना भोग स्वीकार नहीं करते हैं.

-अगर आप में इतनी क्षमता है कि आप निर्जल व्रत रह सकते हैं तो आप व्रत भी कर सकते हैं अन्यथा आप केवल पूजा ही करें लेकिन ध्यान रहे व्रत आप करें अथवा नहीं किंतु इस दिन सात्विक भोजन का ही सेवन करें.

– इस एकादशी का व्रत करके यथासंभव अन्न, वस्त्र, छतरी, जूता, पंखा तथा फल आदि का दान करना चाहिए। इस दिन जल कलश का दान करने वालों को वर्ष भर की एकादशियों का फल लाभ प्राप्त हो जाता है।

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